Last modified on 17 नवम्बर 2020, at 21:57

मिला करें चरणों के / रामगोपाल 'रुद्र'

मिला करें चरणों के फूल रोज-रोज!

घन-घट फूटें, तभी न ढरकेगा नीर;
छेद सके मर्म, चाहिए ऐसा तीर;
हुआ करे पनघट पर भूल रोज-रोज!

कौन दे समीर के सवाल का जवाब?
सुबह-सुबह सुर्ख जिसे चाहिए गुलाब?
चुभा करे बुलबुल को शूल रोज-रोज!

स्वर्ग की छुअन से भूच्छ्वास घनीभूत,
पपीहरी पाँखों को बनें बिंदुदूत:
धुला करे आँखों की धूल रोज-रोज!