मिला करें चरणों के फूल रोज-रोज!
घन-घट फूटें, तभी न ढरकेगा नीर;
छेद सके मर्म, चाहिए ऐसा तीर;
हुआ करे पनघट पर भूल रोज-रोज!
कौन दे समीर के सवाल का जवाब?
सुबह-सुबह सुर्ख जिसे चाहिए गुलाब?
चुभा करे बुलबुल को शूल रोज-रोज!
स्वर्ग की छुअन से भूच्छ्वास घनीभूत,
पपीहरी पाँखों को बनें बिंदुदूत:
धुला करे आँखों की धूल रोज-रोज!