पांडे बूझि भरो तुम पानी
तुमको खबर नहीं का पांडे 'मीटर' अब बैठानी .
टिकस बढ़ावन की बिरिया तो खूब कीन मनमानी,
पानी देत मनुसपलिटी को याद आवत है नानी.
अहिरा रोवै खड़ा दुआरे कैसे सानौं सानी,
कूँआ झांकें लोग-लुगाई सारी कला भुलानी.
समुझावत हैं बाबू बैठे जलदी जैहे पानी,
कैसे रोज रगडिहों साबुन मेरे हिय की रानी.
शौचालय में कठिनाई से मिलिहैं संतों पानी,
'टायलेट-पेपर' बेगि मंगाओ करौ न आनाकानी
पानी बिना नहीं घट बोलै, सबद न एकौ आनी,
कहैं कबीर सुनो हो साधो, यह पद है निरवानी
(कबीरदास जी की तरह)