- सवैया
- सवैया
मीत सुजान अनीत करौ जिन, हाहा न हूजियै मोहि अमोही।
डीठि कौ और कहूँ नहिं ठौर फिरी दृग रावरे रूप की दोही।
एक बिसास की टेक गहे लगि आस रहे बसि प्रान-बटोही।
हौं घनआनँद जीवनमूल दई कित प्यासनि मारत मोही।। 9 ।।
मीत सुजान अनीत करौ जिन, हाहा न हूजियै मोहि अमोही।
डीठि कौ और कहूँ नहिं ठौर फिरी दृग रावरे रूप की दोही।
एक बिसास की टेक गहे लगि आस रहे बसि प्रान-बटोही।
हौं घनआनँद जीवनमूल दई कित प्यासनि मारत मोही।। 9 ।।