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मुँह चिढ़ाते दादा / राजकिशोर राजन

दादा जब बड़े प्रेम से बतियाते
उनकी आँखों में एक शिशु कुलाँचे मारता
उनके अनुभव और उम्र को चिढ़ाता रहता मुँह

वे रस से सराबोर हो समझाते
कि सभ्यता के विकास में अनुभवी लोग
सिर्फ़ उड़ाते हैं हँसी
जमा नहीं करते कुछ भी

अनुभवी लोग अकसर बूढ़े होते हैं
दुनिया के संशयग्रस्त प्राणी
अनुभव रहता इनके सिर पर सवार
जो कुछ करने के पहले ही
उन्हें कर देता पस्त-हिम्मत
मेरा तो मानना है
ऐसे अनुभव को ले तुम ओढ़ोगे कि बिछाओगे
खाओगे कि नहाओगे

दादा की अनुभवी आँखों में
कितनी घृणा थी अनुभव से
कि जब कोई बच्चा उन्हें चिढ़ाता मुँह
वे उसे न समझाते, न गुस्साते, चिढ़ाने लगते मुँह।