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मुंबई / दीपा मिश्रा

एक शहर
समुंदर सा
कितने लोग
कितनी हलचल
उमरते सैलाब सा
किसी के लिए अरमान
किसी के लिए सपना
किसी के लिए हकीकत
किसी के लिए रुतबा सा
झुग्गी झोपड़ी बस्तियां
चिथरों में लिपटी दुनियाँ
तो कहीं बड़ी-बड़ी
गगनचुंबी इमारतें
आकाश से बतियाती
कहीं अपनेआप से सिकुड़ता
तो कहीं खुद को फैलाव देता
लहरों की चोट से अधिक
अपने ही लोगों के
अपने प्रति नफरत से आहत
कुछ मायानगरी बुलाते
तो कुछ इंद्रपुरी
कहीं बाॅलीवुड की
जगमगाती रौशनी
तो कहीं धारावी का
दूर तक फैला अंधेरा
किसी को बुलंदी की
चोटी पर पहुंचाता
तो किसी को पल भर में
राख में मिलाता
मान भी देता
खुद ही सुलझता है मुंबई
हाँ !! यही है मुंबई
शायद हम में तुममें
हमसब में
छिपा बसा हुआ है
एक मुंबई!!