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मुकरियाँ-2 / तारकेश्वरी तरु 'सुधि'

जब भी बैठा थाम कलाई।
मैं मन ही मन में इतराई ।
नहीं कर पाती मैं प्रतिकार ।
क्या सखि, साजन? नहीं, मनिहार ।

धरता रूप सदा बहुतेरे।
जगती आशा जब ले फेरे।
कभी निर्दयी कर देता छल।
क्या सखि, साजन? ना सखि, बादल।

राज छुपाकर रखता गहरे।
तरह-तरह के उन पर पहरे।
करता कभी न भेद उजागर।
क्या सखि, साजन?ना सखि, सागर।

मुझको बाँहो में ले लेती।
मीठे प्यारे सपने देती।
वह सुख से भर देती अँखियाँ।
क्या प्रिय, सजनी? ना प्रिय, निंदिया।

मेरे चारों और डोलता।
जाने क्या क्या शब्द बोलता।
बड़े गूढ़ हैं सारे अक्षर।
क्या सखी, प्रेमी?ना सखि, मच्छर।

मधुर -मधुर संगीत सुनाती।
वह पैरों में लिपटी जाती।
करे प्रेम से मन को कायल।
क्या प्रिय, सजनी?ना प्रिय, पायल।

सुबह सवेरे मुझे जगाए।
प्यारा सा संगीत सुनाए।
खिल-खिल जाती मन की बगिया।
क्या सखि, साजन?ना सखि, चिड़िया।

उसकी सुंदरता, क्या कहना।
पहना उसने एक न गहना।
पुष्प देखकर हरदम मचली।
क्या प्रिय, सजनी?ना प्रिय, तितली।

श्याम सलोना फिर भी प्यारा।
वह अल्हड़ है वह बनजारा।
प्यार जताता वह रह-रहकर।
क्या सखि,साजन?ना सखि, मधुकर।

जैसी हूँ वैसी बतलाए।
सत्य बोलना उसे सुहाए।
मेरा मुझको करता अर्पण।
क्या सखि, साजन? ना सखि, दर्पण।

बात- बात पर करे लड़ाई।
लेकिन पीछे करे बड़ाई।
माने हरदम मेरा कहना।
क्या सखि, साजन ? ना सखि, बहना।

जब-जब मेरा तन-मन हारा।
दिया सदा ही मुझे सहारा।
उसके बिना न आए निंदिया।
क्या सखि, साजन?ना सखि,तकिया।

रात गए वह घर में आता।
सुबह सदा ही जल्दी जाता।
दिन में जाने किधर बसेरा।
क्या सखि, साजन?नहीं,अँधेरा।

आह! निकलती, जब वह छूता।
दर्द मुझे दे सदा निपूता।
उसकी बात न ये माकूल।
क्या सखि, साजन?ना सखी, शूल।

रात- दिवस या साँझ सकारे।
उसके सीने में अंगारे।
धुँआ बना दे वह सबका गम।
क्या सखि, साजन?ना सखी, चिलम।

सब बातों को करे किनारे।
वह बस मेरी नकल उतारे।
तन सुंदर, वह अच्छा श्रोता।
क्या सखि, साजन?ना सखि, तोता।

जब वह आता देता खुशियाँ।
बाट जोहती मेरी अँखियाँ।
फरमाइश का लगे अंबार।
क्या सखी, साजन? नहीं, इतवार।

रखता है हर दिन का लेखा।
उसको करूँ न मैं अनदेखा।
उसे तलाशूँ दिखे न वह गर।
क्या सखि, साजन? नहीं, कलेंडर।

सब सुविधाएँ उस पर निर्भर।
उसके बिन हो जीवन दूभर।
और न दूजा उसके जैसा।
क्या सखि,साजन?ना सखि, पैसा।

नए वसन में वह इठलाती।
सुंदर अँखियों से मुस्काती।
बच्चों की खुशियों की पुड़िया।
क्या प्रिय, सजनी? ना प्रिय, गुड़िया।

मीठे सुर में जब वह गाती।
मेरे मन को बेहद भाती।
ह्रदय सदा ही रहता हर्षुल।
क्या सखि, साजन?ना सखि, बुलबुल।

सार- सार वह मुझको देती।
अपशिष्टों को खुद रख लेती।
इसीलिए वह है मन हरनी।
क्या प्रिय, सजनी?ना प्रिय, छलनी।

अजब- गजब का पाठ पढ़ाए।
सही- गलत राहें दिखलाए।
बातें करें न उथली- थोथी।
क्या सखि, साजन?ना सखि, पोथी।

गोल-गोल मैं उसे घुमाउँ।
चाहे जैसे नाच नचाऊँ।
करे कभी न वह अवहेलन।
क्या सखी, साजन?ना सखि,बेलन।

रंग बिरंगे कपड़े पहने।
लाया है फूलों के गहने।
लगता है मोहक अत्यंत।
क्या सखि, साजन?नहीं,बसन्त।

पायल की छम-छम सुन डोला।
नाच दिखा दे मुझसे बोला ।
उसको भायी मेरी थिरकन।
क्या सखि, साजन? ना सखि, आँगन।

करती नीम सरीखी बातें।
खट्टी- मीठी तीखी बातें।
फिर भी साथ हमेशा बसना।
क्या प्रिय, सजनी ?ना प्रिय, रसना।

उसके बिना न जीया जाए।
ठंड लगे तो ज्यादा भाए।
लगता है वह मेरा हितकर।
क्या सखि, साजन? ना सखि, दिनकर।

कभी इधर वह उधर घूमता।
बार- बार ये गाल चूमता।
मिलता चैन न उसे एक पल।
क्या सखि, साजन?ना सखि, कुंतल।

भरी दुपहरी मुझे जगाया।
फिर हाथों में खत पकड़ाया।
भूली पल भर को मैं दुनिया।
क्या सखि,साजन?नहीं,डाकिया।

उठती गिरती साँसे देखे।।
लेता है धड़कन के लेखे।
चितवन डाले सारे तन पर।
क्या सखि, साजन?नहीं, डॉक्टर।

जब- जब उसको गुस्सा आए।
घर को तहस-नहस कर जाए।
सब दिनचर्या उसने बाँधी।
क्या सखि, साजन?ना सखि, आँधी।

रंग- रुप से बेशक काला ।
फिर भी भाये वह मतवाला ।
पैदा कर दे मन में हलचल।
क्या सखि, साजन?ना सखि, काजल।

सही गलत का भेद बताते।
जीवन को जीना सिखलाते।
नही दूसरा उन-सा रहबर।
क्या सखि, साजन?ना सखि, गुरुवर।

वह निर्बल का साथ निभाती।
ताकतवर के मन को भाती।
यद्यपि कृश उसकी कद काठी।
क्या प्रिय, सजनी?ना प्रिय, लाठी।

सारा जग उसका दीवाना।
भाता उसके ही सँग जाना।
लगता जैसे जग है हासिल।
क्या सखि, साजन?ना,मोबाइल।

जब -जब मुझको गले लगाती।
खुशबू से तन -मन महकाती।
हो जाता यह मन मतवाला।
क्या प्रिय, सजनी?ना प्रिय, माला।

रोज भोर में वह जग जाता।
नाच दिखाकर खूब लुभाता।
सुंदरता का ओर ना छोर।
क्या सखि, साजन?नहीं,सखि मोर।