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मुक़द्दर आज़माना चाहते हैं / नित्यानन्द तुषार

मुक़द्दर आज़माना चाहते हैं
तुम्हें अपना बनाना चाहते हैं

तुम्हारे वास्ते क्या सोचते हैं
निगाहों से बताना चाहते हैं

गल़त क्या है जो हम दिल माँग बैठे
परिन्दे भी ठिकाना चाहते हैं

परिस्थितियाँ ही अक्सर रोकतीं हैं
मुहब्बत सब निभाना चाहते हैं
 
बहुत दिन से हैं इन आँखों में आँसू
`तुषार` अब मुस्कुराना चाहते हैं