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मुक़म्मल ख्वाब / नीना सिन्हा

परछाईयों का कद बड़ा होता है
तुम्हारे किरदार से ज्यादा
वो हँसती हैं
खिलखिलाती हैं
ज्यों चेहरे से जूदा हर भाव
अलग होता है

उन चेहरों पर शांत तरल सी हलचल रही
शगुफ़्ता ज्यों कमल की नाल
जल में थिरकती रही

मन अभीष्ट के इस संसार में
मुकम्मल कोई ख्वाब ढूँढ़ता है!