Last modified on 29 जून 2013, at 16:39

मुकाफात / नून मीम राशिद

अदम वजूद के मा-बैन फ़ासला है बहुत
ये फ़ासला हमें इक रोज़ तय तो करना है
वो किश्‍त-ए-गुल हो के हम बोएँ राह में काँटे
कोई भी फ़ेल हो पर एक दिन तो मरना है
हमारे पीछे हैं वो भी हमें अज़ीज़ हैं जो
इसी तरफ़ से उन्हें एक दिन गुज़रना है
सबा-बुरीदा भी गुल है वफ़ा गुज़ीदा भी दिल
ये बात जे़हन में रखनी है और डरना है
किसी ने पहले लगाए थे साया-दार षजर
इन्हीं की छाँव में बैठे हैं आज हम आ कर