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मुक्तक-13 / रंजना वर्मा

तुम को' पाया तो मौसम सुहाने लगे
देख तुम को नयन मुस्कुराने लगे।
भाव कितने लगे लेने' अंगड़ाइयाँ
कह न पाये अधर थरथराने लगे।।

मिले फुर्सत कभी तो इस गली से भी गुजरना तुम
कभी नजरें झुका लेना कभी दीदार करना तुम।
हमारी बेकली को अपनी आंखों से परख लेना
कभी दिल के झरोखे में जरा आ कर ठहरना तुम।।

आंसुओं से भरा हुआ जीवन
था भला कब हरा हुआ जीवन।
हर कदम दर्द के रिसाले थे
पीर पा कर खरा हुआ जीवन।।

अधर पर मुरलिया धरी श्याम ने
हृदय तन की सुध बुध हरी श्याम ने।
नज़र एक तिरछी जिधर डाल दी
वहीं प्यार की धुन भरी श्याम ने।।

एक अपनी धरा इक गगन साथियों
भिन्न जीवन मगर एक मन साथियों।
मत रहें भिन्न पर प्यार बढ़ता रहे
एक हो देश का इस चलन साथियों।।