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मुक्तक-33 / रंजना वर्मा

अपनों की' किसी जान का जंजाल मत बनो
सन्तोषधन है पास में कंगाल मत बनो।
वाणी बड़ी अनमोल है बोलो संभाल कर
रख ध्यानरत्न साथ में वाचाल मत बनो।।

रंग बिरंगे फूल खिले धरती ने ली अंगड़ाई रे
फूल फूल पर कली कली पर नयी जवानी आयी रे।
हर दिल है जवान हो बैठा सब के मन हैं झूम उठे
अंग अंग से रंग चुअत है अल्हड़ होली आयी रे।।

दल नयी रोज़ चाल चलते हैं
यों ही' लोगों को नित्य छलते हैं।
सिर्फ वादों की राजनीति करें
ये कभी भी नहीं बदलते हैं।।
 
फिर है मस्त बहार लिये आया फागुन
फूलों का भंडार लिये आया फागुन।
रंग बिरंगे फूल डालियों पर झूमे
है अनुपम श्रृंगार लिये आया फागुन।।

मुझे नौ माह अपनी कोख में माँ ने सहेजा है
सहे हैं कष्ट मर्मान्तक तभी दुनियाँ में भेजा है।
पिता तेरी हथेली शीश पर आशीष बरसाये
रखे नित मान बेटी का पिता का ही कलेजा है।।