फिर भी
सुनो!
सुन्दरियो सुनो
गो कि कठिन है
सुन पाना कुछ भी
इतने भीषण संगीत में
देखो
सुन्दरियो देखो
माना कि रखे हैं पहाड़
तुम्हारी पुतलियों पर फिर भी
खोलो, आँखें खोलो
चलो, हाँ अपने पैरों चलो
जैसे चलते हैं लोग
गो कि
अब अटपटी लगेगी
तुम्हें अपनी ही चाल
छमक-चाल से छलांग मार कर
बाहर कूद आओ अपने घर की तरफ
अपनी सुन्दर माताओं
दादियों नानियों के
बिवाई फटे पाँवों से टपकी
खून की बूँदों के सहारे
ढूँढ़ो अपनी राह
सुन्दरियो!
तुम सचमुच सुन्दर हो
विश्वास करो कवि का,
तुम कुछ करो कि