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मुक्ति / कुँअर रवीन्द्र

दरवाज़े. खिड़किया
खोल देने भर से
हम मुक्त नहीं हो जाते
मुक्ति के लिए
दीवारें भी गिरानी पड़ती हैं
 
परन्तु दीवारों की जगह
जब आदमी गिरने लगे
तब समझ लेना चाहिए कि
मिला हुआ समय
अब ख़त्म हो चुका है