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मुक्ति मार्ग / सुरेन्द्र रघुवंशी

भावनाओं के आवेग में जन सैलाब
उमड़ता हुआ चला आ रहा था तुम्हारी ओर
भस्म कर देने को आतुर सूरज को अनदेखा करते हुए
तुम्हारे विश्वास की धरती पर चल रहे थे लोग
खोजने के लिए अपनी मुक्ति का मार्ग
उनकी इसी दृढ इच्छा में
तुमने ज़रूर खोज लिया था अपनी मुक्ति का मॉर्ग

बाहर कष्टों के अंगारों में जल रहे थे लोग
व्यवस्था का सूरज लोगों के सुख के पानी को
अपने षड्यन्त्र की किरणों से
भाप बनाकर सोख रहा था
पर तुम्हारे विशाल वातानुकूलित प्रवचन पाण्डाल में
इत्र युक्त शीतल फव्वारों की वर्षा के बीच
तुम ऐसे राम की कथा कह रहे रहे थे
जिन्होंने अपने कर्तव्य पालन हेतु
विश्व के अपने सबसे बड़े साम्राज्य को फुटबॉल की तरह लात मारकर छोड़ दिया
और नंगे पैर जंगलों में भटकते हुए
अत्याचारियों और आतँकवादियों को मारा

तुम्हारी असँगत रामकथा में सत्य के साथ कोई जुगलबन्दी नहीं दिखाई दी

तुमने नहीं समझाए राम के द्वारा कन्धे पर
सदैव धनुष वाण धारण करने के निहितार्थ
तुमने इस सबसे ज़रूरी केन्द्रीय प्रसँग को
कथा से लगभग ग़ायब करते हुए
इतिहास के सबसे बड़े कथानक और उसके उद्देश्य से खिलवाड़ किया