आकण्ठ डूब जाता है पुरुष
तृप्ति के चरम क्षणों में भी
ऊपर-ऊपर ही
तैरती औरत
लपकती है पा लेने को
इन्द्र-धनुषों की छुअन
***
छुअन और छुअन ही बस
आरोह में अवरोह में
मुखर पुरुष ही
शेष
केवल मौन
आकण्ठ डूब जाता है पुरुष
तृप्ति के चरम क्षणों में भी
ऊपर-ऊपर ही
तैरती औरत
लपकती है पा लेने को
इन्द्र-धनुषों की छुअन
***
छुअन और छुअन ही बस
आरोह में अवरोह में
मुखर पुरुष ही
शेष
केवल मौन