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मुखौटा / अरविन्द श्रीवास्तव

मैंने मारा अपने हृदय पर
पश्चाताप का कोड़ा

और लगाई दौड़ सरपट
उस जगह की

जहाँ मैं
छोड़ आया था
अपना मुखौटा !