Last modified on 26 सितम्बर 2018, at 19:21

मुजतरिब तमन्ना / प्रमिल चन्द्र सरीन 'अंजान'

सजाया है फरिश्तों ने दुल्हन जैसा बहारों को
ख़ुदा ने आने हाथों से संवारा है नज़ारों को

हवाएं मुस्कुराती हैं घटा भी नग़मे गाती है
महब्बत बूए-गुल बन कर फ़ज़ा में लहलहाती है

तमन्नाएं फ़लक पर रंग बन कर आज बिखरी हैं
समंदर ठहरा ठहरा है बहारें सहमी सहमी हैं

फ़लक का सतह पर सागर की रकसां है हसीं साया
है नीले लाल पीले रंग का ये दिलनशीं साया

चरागे-ज़ीस्त गो अंजान मद्धम है, मुसल्सल है
तुम्हारी याद मेरे दिल में पैहम है मुसल्सल है

खुशी के गीत गाते हैं परिंदे शाख़सारों पर
जुनूँ फिर कार फ़रमा है तुम्हारे ग़म के मारों पर

महब्बत दर्द बन कर मेरा दिल आबाद करती है
तमन्ना मुजतरिब हो कर तुम्हीं को याद करती है।