उर्दू अदब के बुलंद क़ामत साहित्यकार और शायर मुज़फ्फ़र हनफ़ी का असली नाम अबुल मुज़फ्फ़र है। उनका जन्म १ अप्रैल १९३६ को खंडवा मध्य परदेश में हुआ। उनका असली वतन हस्वा फतहपुर उत्तर परदेश है। मुज़फ्फ़र हनफी ने उर्दू साहित्य कि बहुत सेवा कि है। पहला शेर ९ साल कि उम्र में कहा। १९४९ से विभिन्न पत्रिकाओं में बच्चों कि कहानियाँ प्रकाशित होना शुरु हुईं। १९५४ में पहली पुस्तक प्रकाशित हुई। १९५९ में मुज़फ्फ़र हनफी ने खंडवा से नए चिराग़ के नाम से मासिक पत्रिका निकाली, जिसे हुन्दुस्तान में आघुनिक साहित्य कि पहली पत्रिका कहा जाता है, शबखून ६-७ साल बाद अलाहाबाद से निकला। नए चिराग़ को उस दौर के बड़े सहित्यकारों ने बहुत सराहा। फ़िराक़ गोरख़पुरी, शाद आरफ़ी, अब्दुल हमीद आदम, रही मासूम रज़ा, खलील उर रहमान आज़मी, एहतेशाम हुसैन, क़ाज़ी अब्दुल वदूद, नयाज़ फतहपुरी, निसार अहमद फ़ारूक़ी और कई नये लिखने वाले इस पत्रिका में प्रकाशित होते थे।
मुज़फ्फ़र हनफी कि शायरी (ग़ज़ल) कि पहली किताब पानी कि जुबां १९६७ हिंदुस्तान में आधुनिक शायरी कि पहली किताब मानी जाती है। मुज़फ्फ़र हनफी ने अपने कैरियर कि शुरआत १९६० में भोपाल से की और १४ साल तक मध्य परदेश के फोरेस्ट डिपार्टमेंट में काम किया यहाँ उनकी मुलाक़ात दुष्यंत कुमार से हुई जो मुज़फ्फ़र हनफ़ी और फज़ल ताबिश की गोष्टी में शामिल होने लगे। मुज़फ्फ़र हनफ़ी और फज़ल ताबिश दुष्यंत को ग़ज़ल कि तरफ लाये।
१९७४ में मुज़फ्फ़र हनफ़ी देहली गये और नेशनल कौंसिल ऑफ़ रिसर्च एंड ट्रैनिंग में नेशनल कौंसिल ऑफ़ रिसर्च एंड ट्रैनिंग में असिस्टेंट प्रोडक्शन ऑफ़िसर पद पर २ साल तक काम किया। फरवरी १९७८ में जमाई मिलिआ यूनिवर्सिटी में उर्दू के अध्यापक नियुक्त हुऐ और १९८९ तक जामिआ में रीडर के पद पर काम किया। १९८९ में कलकता यूनिवर्सिटी ने उन्हे इक़बाल चेयर प्रोफेसेर के पद पर नियुक्त किया और जून १९८९ में वह यह पद क़बूल कर के कलकता पहुँचे। इक़बाल चेयर १९७७ में स्थापित की गयी थी और इस पर फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ का चयन होगया था और वो यह पद स्वीकार करने को तैयार थे मगर ऑफिशियल करवाई में कुछ देरी हुई और वो लोटस के संपादक /एडिटर हो कर बैरूत चले गए। इक़बाल चेयर १२ साल तक खली रही फिर १९८९ में पहली बार मुज़फ्फर हनफी का चयन हुआ। मुज़फ्फर हनफी कलकता यूनिवर्सिटी के पहले इक़बाल चेयर प्रोफेसर हुऐ।
मुज़फ्फ़र हनफी ने ९० पुस्तकें लिखी है और १७०० के लगभग ग़ज़लें कही हैं। उनके शायरी के १३ पुस्तकें, कहानी के ३ संग्रह, तनक़ीद/आलोचना और रिसर्च कि कई किताबें शामिल हैं। मुज़फ्फर हनफी को हिंदुस्तान और हिंदुस्तान से बाहर मुशायरों में अक्सर बुलाया जाता है और पसन्द किया जाता है मुज़फ्फर हनफी एक हक़गौ और सच बोलने शायर माने जाते हैं और उनकी इस छवि कि लोग क़दर भी करते हैं। हर महीने ४-५ मुशायरों के आमंत्रण मिलते हैं मगर मुश्किल से वर्ष में ८-१० मुशायरे में शिरकत करते हैं और अपना ज़यादा वक़्त लिखने पढने में लगाते हैं ।
मुजफ्फर हनफी कि पुस्तकें
अगस्ता क्रिस्टी का नोवेल अनुवाद (१९५४ ), बंदरों का मुशायरा (१९५४), पानी कि ज़ुबान (शायरी १९६७ ),तीखी ग़ज़लें (शायरी १९६८ ), अक्स रेज़ (नज़म १९६९ ),सरीर इ खामा (शायरी १९७३ ),दीपक राग (शायरी १९७४ ),यम बे यम (शायरी १९७९ ),तिलस्म इ हरूफ (शायरी १९८०),खुल जा सिम सिम (शायरी १९८१), पर्दा सुकहन का (शायरी १९८६),या अखी (शायरी १९९७ ),परचम इ गर्दबाद (शायरी २००१ ),हाथ ऊपर किए (शायरी २००२ ), आग मसरूफ है (शायरी २००४ ),कमान खंड १ (शायरी कुलियात खंड १, २०१३), तेज़ाब में तैरते फूल (शायरी कुलियात खंड २, २०१३ ), ईंट का जवाब (कहानी १९६७ ), दो गुण्डे (कहानी १९६९),दीदा हैरान (कहानी १९७० ), वज़हाती किताबियात (२२ खंड जिस में १९७४ से २००० तक हिंदुस्तान में प्रकाशित होने वाली उर्दू किताबों का संक्षिप परिचय है ) , मज़ामीन इ ताज़ा (२००७ मज़मून /आलोचना ), किताब शुमारी (२०१२ ), दूबदू :रू बरू (इंटरव्यूज और अदबी लतीफे, २०१३ ), सवालो के हिसार में (इंटरव्यूज २००७ ),शाद आरफी शख्सियत और फन (१९७८ आलोचना ), नक़द रेज़ (१९७८ आलोचना ),तनकीदी आबाद (१९८० आलोचना ),जिहात ओ जस्तूजू (१९८२ आलोचना ),ग़ज़लयात इ मीर हसन :इंतिखाब ओ मुक़दमा (१९२ शोध),अदबी फीचर और तक़रीरें (१९९२ आलोचना )बातें अदब कि (१९९४ आलोचना ),मुहम्मद हुसैन आज़ाद (१९९६ ),हसरत मोहानी (२०००० ),लाग लपेट के बग़ैर (२००१),हिंदुस्तान उर्दू में (२००७ इस किताब में राम, रामायण, होली, हिंदुस्तानियत, इंदिरा गांधी वगैरह पर लेख शामिल हैं ),शाद आरफी फन और फनकार (२००१ ), मीर तक़ी मीर (२००९), एक था शायर (१९६७ ),नसरू गुलदस्ता (१९६७ ),शौकी तहरीर (१९७१ ),शाद आरफी कि ग़ज़लें (१९७५),कुलियात इ शाद आरफी (१९७५ ),जदीदियत तजज़िया और तफहीम (१९८५ ), जाईजे (१९८५ ),आज़ादी के बाद देहली में उर्दू तंज़ ओ मिज़ाह (१९९० ),रूहे ग़ज़ल (१९९३ इस में ६९३ शौरा कि २२०० ग़ज़लें शामिल हैं। उर्दू ग़ज़ल का अब तक का सब से बड़ा इंतिखाब है ) कुलियात इ साग़र निज़ामी (१९९८ खंड १),कुल्यात इ साग़र निज़ामी (१९९८ खंड २ ),कुल्यात इ साग़र निज़ामी (१९९९ खंड ३ ), नीला हीरा (१९८४ बच्चों के लिये कहानियां ),खेल खेल में (२००५, बच्चों के लिए नज़में), चटखारे(२००७ बच्चों कि नज़मे ),चल चम्बेली बाग़ में (सफरनामा इंग्लेंड २००८),मुज़फ्फर कि ग़ज़लें (हिंदी २००२ ),बंकिम चंद चटर्जी (१९८८ अनुवाद ), बारतेन्दु हरीश चंद (१९८८ अनुवाद ) और कई दूसरी पुस्तके.
१९८४ में डॉ मेहबूब राही ने मुज़फ्फर हनफी कि शायरी पर शोध पी एच डी कर के डॉ ऑफ़ फिलॉसफ़ी की उपाधि प्राप्त की है। उर्दू में किसी ज़िंदा सहित्यकार पर पहला शोध कार्य है। १० से ज़यादा इंटरनेशनल बिओग्राफिकल्स डिक्शनरीज में मुज़फ्फर हनफी का हवाला शामिल है। मिज़गाँ कलकता, सफीर इ उर्दू लंदन, इंतिसाब सिरोंज, सदा ये उर्दू भोपाल, बीसवीं सदी देहली, रोशनाई कराची, चहार सू रावलपिंडी, कन्टेम्प्रोरी वाइब्स चंडीगड़ ने मुज़फ्फर हनफी के फन पर नंबर और गोशे निकाले हैं। इनको ४५ से ज़यादा पुरस्कार मिल चुके हैं।