मुझको देखो, या देखो
दीपावलियों
को!
मैं नहीं रूप पर, सौरभ पर मरने वाला।
मेरा न प्रेम-पथ काँटों से डरने वाला।
दुनिया नादान, कहो न मुझे तुम रस-लोभी!
मुझको देखो, या देखो साधक
अलियों
को!
जग की निष्ठुरता की भी याद नहीं करता।
मैं ईश्वर से भी हूँ फरियाद नहीं करता।
पत्थर पर बलि देने वाले मालाओं की,
मुझको देखो, या देखो गुमसुम
कलियों
को!
बुदबुद से आकुल ही लहरें गुलजार सदा।
तारों से करती रही अमा शृंगार सदा।
सागर, अम्बर को नहीं देखता जग, केवल
देखा करता मेरी मस्ती,
रँगरलियों
को!
(27.5.54)