Last modified on 19 फ़रवरी 2016, at 11:29

मुझको प्रकाश दे दो / विमल राजस्थानी

मुझको प्रकाश दे दो
अपने करुण नयन का मुझको प्रकाश दे दो
मुझको प्रकाश दे दो
छाया घना अंधेरा, प्रभु! दूर है सबेरा
डाले हुए है ”षट-रिपु“ औ’ ”अष्ट पाश“ घेरा
अपने अरुण अयन का टुक भ्रू-विलास दे दो
मुझको प्रकाश दे दो
अपने करुण नयन का मुझको प्रकाश दे दो

प्रभु! रोम-रोम में शुभ, शुचि भक्ति-भाव भर दो
पद-पù पर निछावर श्रद्धा अजर-अमर दो
अपने विराट मन का शाश्वत विकाश दे दो
मुझको प्रकाश दे दो
अपने करुण नयन का मुझको प्रकाश दे दो

प्रभु मुक्त-हस्त से, हँस, करुणा लुटा रहे हैं
भव-सिन्धु-संतरण को तरणी जुटा रहे हैं
दुर्भाग्य हाय! माया के क्रीत-दास बनकर
भव-चक्रवाल में पड़ हम छटपटा रहे हैं
तुम कोष हो कृपा के, सागर क्षमा-दया के
शत-दल कमल-सुमन का हिम-हेम-हास दे दो
मुझको प्रकाश दे दो

अपने करुण नयन का मुझको प्रकाश दे दो
अपने विराट मन का शाश्वत विकाश दे दो
मुझको प्रकाश दे दो

-श्रीकृष्ण जन्माष्टमी, 1960