हे विगत !
है प्रार्थना करबद्ध
मुझको माफ़ करना
खो दिए सब व्यर्थ में ही
जो सलोने पल मिले थे
कर सका संचय न मधु का
पुष्प सारे जब खिले थे
रिक्त ही
अब कोष लेकर
है मुझे तो राह चलना
बो न पाया बीज कोई
वृक्ष बन जो छाँव करता
दे न पाया मुस्कराहट
जो हृदय के घाव भरता
आ गए
आसन्न दुःख, अब
किस तरह होगा उबरना
बेधते उर-प्राण को अब
प्रश्न आगत-दृष्टि के हैं
दे उन्हें पाया न जो
अधिकार उनके सृष्टि में हैं?
हे विगत !
है याचना करबद्ध
मुझको माफ़ करना