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मुझको माफ़ करना / प्रताप नारायण सिंह

हे विगत !
है प्रार्थना करबद्ध
मुझको माफ़ करना

खो दिए सब व्यर्थ में ही
जो सलोने पल मिले थे
कर सका संचय न मधु का
पुष्प सारे जब खिले थे

रिक्त ही
अब कोष लेकर
है मुझे तो राह चलना

बो न पाया बीज कोई
वृक्ष बन जो छाँव करता
दे न पाया मुस्कराहट
जो हृदय के घाव भरता

आ गए
आसन्न दुःख, अब
किस तरह होगा उबरना

बेधते उर-प्राण को अब
प्रश्न आगत-दृष्टि के हैं
दे उन्हें पाया न जो
अधिकार उनके सृष्टि में हैं?

हे विगत !
है याचना करबद्ध
मुझको माफ़ करना