Last modified on 24 अक्टूबर 2012, at 20:02

मुझको शिकवा है मेरे भाई / फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

मुझको शिकवा है मेरे भाई कि तुम जाते हुये ले गये साथ मेरी उम्र-ए-गुज़शता की किताब
इस में तो मेरी बहुत क़ीमती तस्वीरें थीं इस में बचपन था मेरा, और मेरा अहद-ए-शबाब

इस के बदले मुझे तुम दे गये जाते जाते अपने ग़म का यह् दमकता हुआ ख़ूँ-रंग गुलाब
क्या करूँ भाई, ये एज़ाज़ मैं क्यूँ कर पहनूँ मुझसे ले लो मेरी सब चाक क़मीज़ों का हिसाब

आख़री बार है लो मान लो इक ये भी सवाल आज तक तुम से मैं लौटा नहीं मायूस-ए-जवाब
आके ले जाओ तुम अपना यह दमकता हुआ फूल मुझको लौटा दो मेरी उम्र-ए-गुज़शता की किताब