मुझमें ऐसा मंज़र प्यासा
जिसमें एक समंदर प्यासा
सारा जल धरती को देकर
भटक रहा है जलधर प्यासा
भूल गया सारे रस्तों को
घर में बैठा रहबर प्यासा
कोई दरिया नहीं इश्क़ में
दर्द भटकता दर-दर प्यासा
अश्वघोष से जाकर पूछो
लगता है क्यूँ अक्सर प्यासा !