बादल! मुझसे बोलो!
बन्द रन्ध्र सब खोलो!
रोम रोम में बजो
हमारे हो लो!
मिट्टी की यह छुअन
तुम्हारी, उमड़े
गन्ध बने स्मृति की-
व्याकुल, बोलो!
जी भर जी को धो लो!
बादल! मुझसे बोलो!
बन्द रन्ध्र सब खोलो!
रोम रोम में बजो
हमारे हो लो!
मिट्टी की यह छुअन
तुम्हारी, उमड़े
गन्ध बने स्मृति की-
व्याकुल, बोलो!
जी भर जी को धो लो!