कैसे कहूँ मुझे किस-किस ने लूटा
मुझे तो अपने ही घर ने लूटा
शर्म आती है मुझे कहने में
कहाँ से शुरू करूँ कब से शुरू करुँ
पिता से शुरू करुँ या पति से
बचपन से शुरू करुँ या जवानी से
मुझे तो पहले सभी अपनों ने लूटा
फिर कभी अँधेरी गलियों ने
तो कभी सूनसानों ने लूटा
सुबह मंदिर ने लूटा
शाम मीडिया ने लूटा
नुक्कड़ की आँखों ने लूटा
चौराहे की मुस्कानों ने लूटा
खेतों ने लूटा खिड़कियों ने लूटा
बर्दी ने लूटा लबादों ने लूटा
चली तो सफर ने लूटा
सोयी तो सपनों ने लूटा
मत पूछो किस-किस ने लूटा
मुझे तो धरने में
अपने ही कामरेडों ने लूटा
किस-किस का नाम लूँ मैं
मुझे तो अवसरों ने लूटा