मुझे मिला है शरीर - क्या करूँ मैं उसका ?
उस इतने साबूत और इतने मेरे अपने आपका ?
साँस लेने और जीने की ख़ुशियों के लिए
किसे कहूँ मैं शब्द धन्यवाद के ?
मैं ही फूल हूँ और मैं ही उसे सींचने वाला
अकेला नहीं मैं संसार की काल कोठरी में ।
काल की अनन्तता के काँच पर
यह मेरी गरमी है और यह मेरी साँस ।
उभर आती है उस पर ऐसी बेलबूटी
तय करना मुश्किल कि असल में वह है क्या ?
धुल जाएगी आज के इस क्षण की मैल
पर मिटेगी नहीं यह सुन्दर बेलबूटी ।
मूल रूसी से अनुवाद : वरयाम सिंह