मुझे लगता है कोई बुलाता है
मैं क्या करुँ
साँझ पड़ते ही मन में प्रतीक्षा सी
आ जाती है
कोई आएगा कोई आएगा
पर आती है
सुनसान अँधेरी रात
तिमिर छा जाता है
बैठे बैठे उदासी जी की
कहाँ खो जाती है
मेरे मन की मलिनता हँसी
की लहर धो जाती है
फिर लगता है
अब आया सलोना
प्रभात जगत जग जाता है
(रचना-काल - 23-7-56)