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मुझे विश्वास है / सुनीता जैन

मैं हार नहीं मानूँगी
और अपने चले गये
शब्दों को
कहीं से ढूँढ़ निकालूँगी

मुझे विश्वास है।

मैं इस वाणिज्य-विनियम से
हाथों को धो लूँगी
और धुली-धुली फिर
साफ कलम से
नहीं कविता को ढालूँगी

मुझे विश्वास है।

तुम्हरे इन सारे दुराग्रह
और अखाड़ों से,
मैं अपना कथ्य
बचा लूँगी
और जैसे-जैसे प्रेरित होंगे
शब्द अर्थ, मैं
वैसे-वैसे उनका
सहज-संयोजन निर्वाह लूँगी
मुझे विश्वास है।