एक औरत
चढ़ गई है मेरे सिर पर
यही मेरी इच्छा थी!
शब्द-शब्द
घुस गई है
मेरी रगों के भीतर
यही
मेरी इच्छा थी!
यह जो शीशे की कटार की धार पर
टँग गए हैं दिन
इसी औरत की बदौलत है!
तूने ज़र्रा-ज़र्रा
चुन लिया है
मेरी रातों का ज़हर
जादूगरनी
मुझ पर रहम कर!