भोर में जब हम गुज़र रहे थे गाड़ी में ठंड से जमे हुए खेतों के बीच से
अंधेरे में उभर ए थे लाल डैने
और एकाएक एक खरगोश भागा सड़क के आर पार
हम में से एक ने उसकी ओर किया हाथ से इशारा
यह है बहुत समय पहले की बात, आज उनमें से नहीं है जीवित कोई भी
न तो खरगोश, न ही वह आदमी जिसने किया था इशारा
ओह मेरे प्रिय, कहाँ हैं वे, कहाँ जा रहे हैं वे
हाथ की कौंध, क्षण भर की जुम्बिश, पत्थरों की सरसराहट।
मैंने पूछा दुःख से नहीं, बल्कि आश्चर्य से।