♦ रचनाकार: अज्ञात
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मुरलिया बाजे जमुना तीर
बंशी बाजी जमुना तीर
हाथों के गहिने राधा पैरों में पहिने
ओढ़ आई उल्टा चीर रे। मुरलिया...
संग की सहेली मैंने कुआओं पे छोड़ी
छोड़ आई कुल की रीति रे। मुरलिया...
सास ननद मैंने सोवत छोड़ी
छोड़ आई साजन और बीर। मुरलिया...
ऐसे प्रेम रंगे सब मोहन
बिनती करूं मैं रघुबीर। मुरलिया...