धरती पर गिर कर कलदार की तरह टन्न से बजने वाले
कई मुसलमान लड़के मेरे पक्के दोस्त हैं
कई तो इतने कि उनसे किसी बात पर
मेरा आज तक अबोला नही हुआ
बाबरी-मस्ज़िद ढहा दी गई तब भी
और हाल में मुसलमानों को ज़िन्दा जलाया गया तब भी
हिन्दू होने से पहले जैसे एक लड़का हूँ मैं
शरारती, बदमाश और हँसोड
मुसलमान होने से पहले वे भी लड़के हैं
और बिलकुल मेरे ही जैसे शातिर
भले ही उनमें भी मेरे जैसी शरारतें कूट-कूट कर भरी हों
मगर यह अहसास कि वे मुसलमान हैं
उन्हें हमेशा डसता ही रहता है
जिसे रहते हुए उनके साथ, मै बेहद क़रीब से
देखता हूँ छूकर, जबकि मुझे कभी-कभार ही
ख़ुद को याद दिलाना पडता है मैं हिन्दू हूँ
इसके बावजूद कि इस बीच मुझे बार-बार
अपना हिन्दू होना और उसे गर्व से कहना याद दिलाया गया है
मैं महसूस करता हूँ कि आँधी इस बीच
अपने साथ बहुत कुछ ले गई उड़ाकर
इस बीच हम में से कई हिन्दू लड़के पक्के हिन्दू हो गए
और कई मुसलमान लड़के पक्के मुसलमान
लेकिन वे इस अँधड़ में भी मेरे पक्के मित्र बने रहे तो बने रहे
वे मेरे मित्र बने रहे इस वज़ह से मैं यह जान सका
उन शरारतियों को मेरी तरह जीने के लिए
अपना मुसलमान होना कहाँ-कहाँ नही छिपाना पडता है
ठीक उसी तरह हिन्दू लड़कियाँ उन्हे बहुत पसन्द आती हैं
जैसे मुझे इतराकर देखतीं मुसलमान लड़कियाँ
लेकिन उन्हे पटाने के मामले में मुझमें और उनमें
एक अंतर साफ़ है मुझे मुसलमान लड़कियों के सामने
अपना हिन्दू होना छुपाना नही पडता
जबकि उन्हें हिन्दू लड़कियों के आगे ख़ुद की
पहचान छिपानी पडती है
और जब तक वे उनके बारे मे जान पाती हैं
देर हो चुकी होती है,
सच तो ये है कि मेरे मुसलमान दोस्तों ने
जितनी भी हिन्दू लडकियाँ पटाईं, शुरु में उन्होंने
किसी को ये नही बताया कि वे कौन है
कई दफ़ा अतिवादी पैरोकार ये जाने बिना कि मेरे साथ
जो मित्र खड़ा है वह मुसलमान है
मुसलमानों को शुरु कर देते है गालियाँ देना
दोगलेपन की कोई सीमा नही इनकी
विश्वास तो इन पर सूत बराबर नही
यह भी कोई बात हुई
खाओं यहाँ के और बजाओं वहाँ की
उस समय ये मेरे मुसलमान मित्र लड़के
धरे रहते है धीरज़, नही करते कोई बहस
उठकर चल देते है चुपचाप, वे इस बारे में
मुझसे भी नही करते कोई बात
लेकिन उस वक़्त मैं उनकी आँखों की नमी
अपनी आँखों मे शिद्दत से करता हूँ महसूस
एक बात जो मुझे अच्छी लगती है, मुसलमान लड़के
अपढ़, निर्धन और निराश होने के बाद भी
दिमाग़ और देह की दृष्टि से पक्के होते हैं
वे मेरे साथ बढ़-चढ़ कर लेते है खेलों मे हिस्सा
मेरी तरह उनकी तेज़ गेंदें पलक झपकते ही
उड़ा देती है सामने वाले खिलाड़ी के स्टम्प
किसी जादूगर की तरह उनके भी हाथों की हाँकियाँ
गेंद को नचाते हुए आगे बढ़ती है
और पडोसी गोलची को छकाते हुए कर आती है गोल
यही समय होता है जब ये मेरे मित्र लड़के
उन्हें मुसलमानों की जगह खिलाड़ियों की तरह आते है नज़र
उस वक़्तत वे उन्हें देखकर कह भी देते हैं
हमे फलाँ खिलाड़ी जैसे मुसलमान लड़के चाहिए
एक बात मैने बारीकी से पकड़ी
मेरे मुसलमान दोस्त हिन्दू लड़कों की तरह
अपने धर्म के बारे मे नही करते ज़्यादा बात
मै उनके भीतर संकोच उगा देखता हूँ
जबकि एक मै हूँ मौक़ा मिलते ही
चबड़-चबड़ किए बिना नही मानता
वे डरतें है अपने धर्म की कहने पर पर कहीं
उन्हें पक्का मुसलमान न मान लिया जाए
जबकि उनमें से अधिकतर मेरी तरह हैं
जैसे मै पूजा पाठ नहीं करता
वे भी रोज़े वगैरह के चक्कर मे नही पड़ते
मुसलमान लड़के जो मेरे खरे दोस्त है
उनके चेहरों पर छाया स्थाई सूनापन देखकर
हमेशा लगता है कि मेरे अंतरंग होने के बाद भी
ये मुझसे नही कहते मन की
नही दिखाते मुझे अपना रंज़ खोलकर
फिर ये अपने मन की किससे कहते होंगे
क्या ये मुसलमानों के बीच कहते होंगे सब
बिछाते होंगे अपनो के सामने अपना दुख,
डरता हूँ, ऐसा न हो, अपना दुख कहते-कहते
अपने लोगों के फन्दों मे उसकी तरह से न उलझ जाएँ वे
जैसे मुझे हिन्दू को अपने जाल में फाँसने
नाना प्रकार के ताने बुन रहे है मेरे लोग...।