Last modified on 4 अप्रैल 2020, at 15:52

मुस्कानों में रात चाँदनी / रंजना वर्मा

चंदन-सा तन महका-महका
साँसों में है रजनीगंधा
मुस्कानों में रात चाँदनी॥

झरते फूल हँसी से तेरी
श्याम घटाएँ गीले कुंतल
आंचल तेरा हवा मधुबनी।
मुस्कानों में रात चाँदनी॥

आहट में नूपर की रुनझुन
कर में कंगन की झनकारें
उर में प्रिय की याद अनमनी।
मुस्कानों में रात चाँदनी॥

करती व्याकुल मौन प्रतीक्षा
बिंदिया मेहंदी और महावर
सुनी मिलन की मधुर रागिनी।
मुस्कानों में रात चाँदनी॥

कंचन-सी यह देह वल्लरी
अधर ओष्ठ युग-युग से प्यासे
आँखों में अभिलाष रंजनी।
मुस्कानों में रात चाँदनी॥