मुस्कान ही मुस्कान,
परिचित भी चिर-अपरिचित,
अनुभूत भी चिर अजान.
वन, नदी, कछार,
चाँदनी में सभी एकाकार.
कहाँ वे नयन,
नासिका, कपोल, भ्रू-रेखा!
मैंने तो तुम्हारी मुस्कान के सिवा
कुछ भी और नहीं देखा.
मुस्कान ही मुस्कान,
परिचित भी चिर-अपरिचित,
अनुभूत भी चिर अजान.
वन, नदी, कछार,
चाँदनी में सभी एकाकार.
कहाँ वे नयन,
नासिका, कपोल, भ्रू-रेखा!
मैंने तो तुम्हारी मुस्कान के सिवा
कुछ भी और नहीं देखा.