Last modified on 17 जुलाई 2020, at 21:43

मुस्कुराएगी ज़िन्दगानी भी / कैलाश झा 'किंकर'

मुस्कुराएगी ज़िन्दगानी भी
बालपन और ये ज़वानी भी॥

फेंक दी याद से जुड़ी चीजें
काम करती मगर निशानी भी।

उसके जीवन की दास्तां कहती-
कुछ फ़जल होते आसमानी भी।

दिल धड़कता रहा है धड़केगा
जानती है वह राजधानी भी।

मैंने खेती वफ़ा कि कर-कर के
सीख ली है यहाँ किसानी भी।

बृक्ष बनकर भला करेगा यह
है ज़रूरी ही बागवानी भी।