मेरे पास नहीं हैं
तुम्हारे प्यार के काबिल मुहब्बत के रंग
मैं कैसे कोई तस्वीर बनाऊँ …. ?
अपने आप के रंगों से
जब भी मैं खींचती हूँ लकीरें
कोई बुत सा उतर आता है …
कुछ और लकीरें खींचती हूँ
कई सारी परछाइयां हैं
कुछ और लकीरें खींचती हूँ
सूखे दरख़्त , बिखरे घरौंदे ,कब्रें …
मैं और खींचती हूँ …
अँधेरे आलिंगन में लेकर
दहाड़ें मारने लगते हैं …
बता मैं …
इन सूखे हुए रंगों से
तुम्हारे कैनवास पर
मुहब्बत का रंग
कैसे उकेरूँ ………!?!