जितनी जिसकी कल्याणी वाणी
उतनी उतनी पाता वह भाषा
किन्तु पा लेने भर से
कभी नहीं कुछ होता-
हर पल अखुँआना होता है,
जल दे-दे अक्षर को,
तब कहीं पनपती वह-
सोते-जगते,
किसी पुनीत पल,
टप् से झर
कविता का फल होता है
जितनी जिसकी कल्याणी वाणी
उतनी उतनी पाता वह भाषा
किन्तु पा लेने भर से
कभी नहीं कुछ होता-
हर पल अखुँआना होता है,
जल दे-दे अक्षर को,
तब कहीं पनपती वह-
सोते-जगते,
किसी पुनीत पल,
टप् से झर
कविता का फल होता है