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मूक वेदना सहती प्रतिपल है दिल की धड़कन / रंजना वर्मा

मूक वेदना सहती प्रतिपल है दिल की धड़कन
आज हो गयी मेरी मेरे ही मन से अनबन

धूमिल सपनों ने है त्यागा नयन बसेरे को
बस्ती अरमानों की जलती जैसे लगी अगन

ब्याह रचाने चला दर्द भी अश्रु - रूपसी से
माँग रहीं मुस्कान सिसकियाँ क़रतीं हैं ठनगन

खेल खेलती लुकाछिपी का चपल चाँदनी भी
श्याम चुनरिया तारों वाली डाले नील गगन

मोह रहीं मधुमय यादें बन सोने के सिक्के
कर्ण कुहर को लगती प्यारी है उनकी ठन ठन

बिना तुझे देखे रहते व्याकुल नैना प्यासे
तुझ से ही हैं मेरी साँसें तुझ से ही जीवन

एक बार बस मुझे साँवरे तू अपना कह दे
तुझे समर्पित कर दूँ अपना नेह गेह तन मन