मूर्ख है कोयल
जो बारिश के आगमन से
पुलकित हो उठती है।
पागल है हवा
जो हरे भरे पेड़ों को देख
थिरक उठती है।
मनुष्य समझदार है।
जो पर्यावरण से बच कर
निकल जाता है।
और!
रेल पटरी बिछाने को बाध्य हो जाता है चलेगी रेल
पहुँचाएगी गंतव्य तक शीघ्र।
कटेंगे पेड,
प्रकृति स्तब्ध थी।
यों धराशयी सी
धरती पर पड़ी थी।
पर्यावरणविद मौन थे।
विकास पर हस्ताक्षर थे।