रीढ़ की हड्डी
जहाँ खत्म होती है कमर के नीचे,
कमला को खूब दर्द रहता है वहाँ!
प्रवचन में बताया गया था मूलाधार चक्र है
ठीक वहीं!
साधू बाबा सिखा रहे थे
मूलाधार से त्रिकुटी तक पहुँचने के उपाय
पर कमला कुछ नहीं सीख पाई।
सुबह की चाय से लेकर,
रात बिस्तर पर बिखरने तक,
यही मूल आधार तो सँभाले रहता है सारा घर,
उसे तो यही समझ आया।
बच्चों, बच्चों के पिता और उनके भी पिता के बीच
सेतु सी तनी कमला,
ज़रूरत पर
हो जाती है पानी,
तो कभी चूल्हे की आग,
कभी मीठी तो कभी नमकीन,
घर की ज़रूरत के हिसाब से
बन जाती है वो नौ रसों का कोई रस,
या कभी सब रस घालमेल कर
बिखरते हैं
उसके रोम-रोम से।
मूलाधार है वो इस घर की,
त्रिकुटी की यात्रा,
उस पर से होकर जाती है
और वो घर और इसके लोगों के बीच
मूलाधार की कील बनी घूमती जाती है!
इसी से दर्द रहता है उसे बराबर,
ठीक वहाँ जहाँ रीढ़ की हड्डी खत्म होती है,
जिसे कहते हैं
मूलाधार चक्र!