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मृगतृष्णा / कविता कानन / रंजना वर्मा

तृष्णा मन की हो
या तन की
धन वैभव की
या जीवन की
सदैव
दुखदायिनी ।
न बुझे तो रहे सताती
भीषण अतृप्ति
बून्द भर पानी
कभी न मिटने वाली
कहानी ।
दूर पर दिखती
पानी की धारा
नहीं मिलता किनारा
पा कर भी
और पाने की
अदम्य लालसा
कहाँ मिलता है
वह मृग जल
जो संतृप्त करे
मन की मृगतृष्णा को।
मिलती है
अतृप्ति
कभी न बुझने वाली
सतत प्यास....