♦ रचनाकार: अज्ञात
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मृगनैनी तेरौ यार नवल रसिया, मृगनैनी॥ टेक
बडत्री-बड़ी अँखियन नैनन कजरा 2
तेरी टेड़ी चितवन मेरे मन बसिया॥ मृगनैनी.
अतलस को याकौ लँहका सोहै 2
झूमक सारी मेरे मन बसिया, मेरे मन...॥
छोटी-छोटी अंगुरिन मूंदरी सोहै।
याके बीच आरसी मन बसिया, ओ मन...॥ मृगनैनी.
बाँह बरा बाजूबन्द सोहै 2
हियरे हार दिपत छतिया, ओ दिपत॥
रंगमहल में सेज बिछाई 2
यापै लाल पलंग पँचरंग तकिया, ओ पचरंग...॥ मृगनैनी.
‘पुरुषोत्तम प्रभु’ देख विवश भये 2
सबै छाँड़ि ब्रज में बसिया, ओ ब्रज में...॥ मृगनैनी.