Last modified on 29 सितम्बर 2013, at 16:38

मृग-तृष्णा / मोती बी.ए.

नाचत बाटे घाम रे हिरन बा पियासा
जेठ के दुपहरी में रेत के बा आसा
रेतिया बतावे, दूर-नाहीं बाटे धारा
तनी अउरी दउर हिरना, पा जइब किनारा
पछुवा लुवाठी ले के चारों ओर धावे
रेतिया के भउरा बनल देहिया तपावे,
भीतर बा पियासि, ऊपर बरिसेला अंगारा। तनी....
फेड़ नाहीं, रुख नाहीं, नाहीं कहूँ छाया
कइसन पियासि विधिना काया में लगाया
रोंआ-रोंआ फूटे मुँह से फेंकेल गजारा। तनी....
खर्ह पतवार ले के मड़ईं छवावें
दुनिया के लोग दुपहरिया मनावें
मारल-मारल फीरे एगो जिउआ बेचारा। तनो....
तोहरो दरद दुनिया तनिको ना बूझे
कहेले गँवार तोहके झुठहूँ के जूझे
जवने में न बस कवनो ओ में कवन चारा। तनी....
दुनिया में केहू के ना मेहनति बेकार बा
जेही धाई, ऊहे पाई, एही के बाजार बा
छोड़ सबके कहल-सुनल आपन ल सहारा। तनी....