तुम मेरे पास के
हृदय के
बहुत प्यारे कवि हो
मृत्युंजय!
तुमने
लिखीं हैं जो कविताएँ
स्वानुभूति से
सहज लिखी हैं,
सत्य
जो छोटे हैं
जिन्हें कोई नहीं छूता
तुमने छुआ
कविताओं में
उन्हें पेवस्त किया
अब वे सत्य
आदमी के अमिट सत्य हैं
रचनाकाल: १५-०४-१९६८