जल रही है इस श्मशान में
ढेरों लकड़ियाँ
जलना मुझे भी अच्छा लगता है,
खूब अच्छा लगता है
पर मैं जलना चाहता हूँ
किसी नदी के तट पर ।
कारण, एक समय ऐसा आता है
आ भी सकता है जब
आग असहनीय सी लगने लगती है
नदी के तट पर
और मुर्दा भी माँग ही सकता है
आचमनी भर जल ।
तब वह मृत्यु नहीं हो पाती सफल,
कभी हो भी नहीं सकती सफल ।
मीता दास द्वारा मूल बांग्ला से अनूदित