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मृत्यु अन्त है / अज्ञेय

 मृत्यु अन्त है सब कुछ ही का फिर क्यों धींगा-धींगी, देरी?
मुझे चले ही जाना है तो बिदा मौन ही हो फिर मेरी!

होना ही है यह, तो प्रियतम! अपना निर्णय शीघ्र सुना दो-
नयन मूँद लूँ मैं तब तक तुम रस्सी काटो, नाव बहा दो!

1935