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मृत्यु के साथ जीना / सुभाष राय

जीवन के भीतर ही रहती है मृत्यु
उल्लास में, वेदना में, द्वेष और छद्म में
घर के किसी कोने में, चीनी या नमक मे
दिल की धड़कनों में घोंसला बना सकती है मृत्यु

मैनहोल के मुहाने पर बैठी हो सकती है
किसी कमज़ोर पेड़ के तने में
पहाड़ों, नदियों और फूलों में भी हो सकती है
  
मृत्यु के बग़ैर जीना सम्भव नहीं
जीने के लिए मरने की तैयारी बहुत ज़रूरी है