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मृत्यु गीत / 4 / भील

भील लोकगीत   ♦   रचनाकार: अज्ञात

चुइण्यो चुइण्यो महलो गंधये राम।
चुइण्यो चुइण्यो महलो गंधये राम।
बणिया रे श्री राम पोपट
एक दिन रइणें नि पायो, राम को बुलावो आयो।
एक दिन रइणें नि पायो, राम को बुलावो आयो।
लागि गयो द्वारिका री वाट राम, बणियो पोपट श्री राम को।
चुइण्यो-चुइण्यो हिचको बंधायो राम।
चुइण्यो-चुइण्यो हिचको बंधायो राम।
एक दिन हिचणें नि पायो राम।
एक दिन हिचणें नि पायो राम।
आइ गयो राम को बुलावो।
लागि गयो द्वारिका री वाट राम, बणियो रे श्री राम पोपट।
चुइणों चुइणों भोजन रंधाड्यो राम।
चुइणों चुइणों भोजन रंधाड्यो राम।
एक कवळ नि खाणें पायो राम, आइ गयो राम को बुलावो।
लागि गयो द्वारिका री वाट राम, बणियो रे पोपट श्री राम को।

- चुन-चुनकर महल बनाया। महल अच्छा बना। एक दिन भी रहने न पाया, मेरे
राम। मेरे राम तो भगवान राम के पोपट बनकर उड़ गए। मेरे राम ने द्वारिका का
रास्ता पकड़ लिया।

अच्छा झूला बँधाया। मेरे राम ने, पर एक दिन भी झूलने नहीं पाये और राम का
बुलावा आ गया। मेरे भगवान राम के पोपट बनकर उड़ गए। मेरे राम ने द्वारिका
का रास्ता पकड़ लिया।

मेरे राम ने अच्छा भोजन बनवाया, किन्तु एक कौर भी नहीं खा पाये, भगवान राम
का बुलावा आ गया। वे पोपट बनकर उड़ गए और द्वारिका का रास्ता पकड़ लिया।
पत्नी इस प्रकार पति की मृत्यु पर रो-रो कर दुःख प्रगट करती है।