इस संघर्ष की समाप्ति है तू, मैं केवल अवशेष हूँ
अंत में मेरी प्राप्ति तू ही है, मैं केवल निर्निमेष हूँ
अंगीकार हूँ तू, निर्णीत है मेरी समस्त क्रियाओं में
स्वीकार है मुझे तू, इस महायात्रा की प्रक्रियाओं में।
अंतःसलिला तू निर्धारित है, सहस्र युगों के प्रारंभ से
मैं देह निमित मात्र, तेरी सारी इच्छाओं के आरंभ से
श्रेष्ठ रही तू अंतिम कण पर्यंत, इस महा वलय की
मैं तुच्छ निस्सीम तिमिर हूँ, अनिश्चित महाप्रलय की।
पंचभूत की नायिका मैं, तू है मोक्ष मार्ग की सारथी
भाग्यचक्र की भग्न अक्ष मैं, हूँ माया जड़ित स्वार्थी
है नक्षत्रपुंज की ज्योति राशि, है तू स्वर्गीय अल्पना
मैं निशीथ का रुदन, हूँ वीभत्स काल की कल्पना।
हे, मृत्यु कलिका! हो पल्लवित, मनोरम वा सुरभित
कर शुभ्रा मुझे, मैं अनंत काल से हूँ क्लांत व व्यथित॥