अपने स्वर में मृदु लय लाओ
सबसे सहज मौन रहना है
रोज रोज भी क्या कहना है
जिस पर हो प्रतिवाद नित्य ही
उसको सुन कर भी सहना है
भाईचारा नष्ट करें उन शब्दों को बिसराओ
अब तो मन की गाँठे खोलो
कुंठाओं से विस्मृत हो लो
कब होगा परिवर्तन प्यारे!
बोलो प्यारे! कुछ तो बोलो!
अंधकार की बस्ती में कुछ तो प्रकाश बिखराओ
दर्द तुम्हारा भी मेरा हो
नहीं सिर्फ अपना घेरा हो
जो इतिहास टीस देता हो
उसका हे मन !मत चेरा हो
तुम समवेत स्वरों में मिल कर गीत प्रेम के गाओ
कही अगर कर्कशता है तो उसको दूर भगाओ